NDA की रणनीति: कोर वोटरों का
सुदृढ़ीकरण
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला एनडीए
गठबंधन (जिसमें भाजपा, जदयू, लोजपा-आरवी, हम-एस शामिल हैं) इस बार अपनी पुरानी सामाजिक इंजीनियरिंग
की लीक से हटकर, अपने मूल वोट बैंक को मजबूत करने (Social
Reinforcement) की रणनीति पर लौट आया है।
1. सामाजिक समीकरणों का बदलाव
- यादव-मुस्लिम से दूरी: एनडीए ने
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के मुख्य यादव-मुस्लिम (M-Y) वोट बैंक
में सेंध लगाने के पिछले प्रयोग को लगभग छोड़ दिया है। जदयू ने मुस्लिम
उम्मीदवारों की संख्या 2020 के 11 से घटाकर केवल 4 कर दी है,
जबकि यादव उम्मीदवारों की संख्या भी घटाई गई है,
यह मानते हुए कि यह वर्ग बड़े पैमाने पर आरजेडी के साथ
बना रहेगा।
- लव-कुश और ईबीसी पर फोकस: जदयू ने
अपना पूरा ध्यान लव-कुश (कुर्मी-कोयरी) समुदाय पर
केंद्रित कर दिया है। जदयू ने कुर्मी-कोयरी जातियों से 25, अत्यंत
पिछड़ा वर्ग (EBC) से 22, और सवर्ण जातियों से 22 उम्मीदवारों
को टिकट दिए हैं। यह नीतीश कुमार के पारंपरिक कोर वोट बैंक को एकजुट करने की
स्पष्ट कोशिश है।
- भाजपा का आधार: भाजपा ने
अपने हिस्से की 101 सीटों में से 49 सवर्ण
जातियों को और 52 टिकट ओबीसी, ईबीसी और दलितों को दिए हैं, जो उसके
पारंपरिक सवर्ण और गैर-यादव ओबीसी आधार को साधने की रणनीति को दर्शाता है।
2. सीएम फेस की अनिश्चितता
एनडीए के लिए सबसे बड़ा रणनीतिक जोखिम और विपक्ष
का मुख्य हमलावर बिंदु मुख्यमंत्री पद का चेहरा है।
- नीतीश का नेतृत्व: गठबंधन
औपचारिक रूप से नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहा है, लेकिन
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं (जैसे अमित शाह) के बयानों से यह अस्पष्ट हो गया है
कि जीत के बाद भी वे मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं, यह विधायक
दल तय करेगा।
- वंशवाद बनाम सुशासन: एनडीए,
खासकर जदयू, तेजस्वी यादव पर 'वंशवाद'
की राजनीति करने और 'जंगल राज'
की वापसी का खतरा बताकर हमलावर है। इसके विपरीत,
नीतीश कुमार द्वारा अपने कार्यकाल में 18 लाख
सरकारी नौकरियों के आवंटन और सुशासन के दावों को मुख्य मुद्दा बनाया जा रहा
है।
INDIA ब्लॉक (महागठबंधन) की
रणनीति: युवा अपील और आर्थिक मुद्दे
आरजेडी के नेतृत्व में महागठबंधन (जिसमें
कांग्रेस, वाम दल और मुकेश सहनी की वीआईपी शामिल है) ने इस चुनाव को सामाजिक न्याय के
साथ-साथ बेरोजगारी और पलायन जैसे आर्थिक मुद्दों पर
केंद्रित करने की रणनीति बनाई है।
1. नेतृत्व की स्पष्टता और
विस्तार
- तेजस्वी का चेहरा: महागठबंधन
ने तेजस्वी यादव को सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके
नेतृत्व की अनिश्चितता को खत्म कर दिया है। यह कदम युवाओं और गठबंधन के भीतर
एकता का संदेश देता है।
- मुकेश सहनी (VIP) का दांव: विकासशील
इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का
उम्मीदवार बनाकर महागठबंधन ने एक "वाइल्डकार्ड" खेला है। यह कदम
निषाद (मल्लाह) समुदाय (जो लगभग 4-5% है) और अति-पिछड़ी जातियों को साधने का
प्रयास है, जिन्हें एनडीए से तोड़ने की कोशिश की जा रही है।
2. नौकरी और 'बिहारी'
पहचान का मुद्दा
- 'नौकरी' का वादा: तेजस्वी
यादव की पूरी चुनावी अपील सरकारी नौकरी के वादे
पर टिकी है। उन्होंने वादा किया है कि सरकार बनने पर 20 महीनों के
भीतर हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी। यह वादा, उनके
उपमुख्यमंत्री कार्यकाल में दी गई नौकरियों की पृष्ठभूमि में, बिहार के
बड़े युवा और बेरोजगार वर्ग को सीधे आकर्षित करता है।
- एनडीए पर हमला: तेजस्वी
लगातार एनडीए के 20 साल के शासन पर 'पलायन
नहीं रोकने' और बिहार के 'गरीब राज्य' बने रहने
के लिए हमला कर रहे हैं। उन्होंने नीतीश कुमार पर 'बाहरी
ताकतों द्वारा हाईजैक' होने का आरोप लगाते हुए 'बिहारी को
वोट देने' की भावनात्मक अपील की है।
3. सामाजिक न्याय का विस्तार
आरजेडी अभी भी अपने एम-वाई (मुस्लिम-यादव) आधार
पर निर्भर है, लेकिन अब इसने अन्य ओबीसी समूहों और सवर्णों में भी
उम्मीदवार उतारकर अपनी सामाजिक पहुँच का विस्तार करने का प्रयास किया है। वाम दलों
(CPI-ML, CPI, CPM) की मजबूत ग्रामीण पकड़ महागठबंधन को दलित और बटाईदार
किसानों के बीच अपनी पहुँच बढ़ाने में मदद करती है।
निर्णायक कारक और चुनौतियाँ
इस चुनाव के परिणाम को निम्नलिखित तीन प्रमुख
कारक निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं:
- जातिगत गणित और समन्वय (4 'C' फैक्टर): बिहार की
राजनीति में जाति (Caste) सर्वोपरि है। दोनों गठबंधनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती
है कि वे अपने-अपने सामाजिक समीकरणों को केवल टिकट वितरण तक सीमित न रखें,
बल्कि सहयोगी दलों और स्थानीय नेताओं के बीच प्रभावी
समन्वय (Coordination) सुनिश्चित करें। 2020 में कई
सीटों पर 500 से भी कम वोटों के अंतर से जीत-हार हुई थी, जो गठबंधन
के समन्वय को अत्यंत महत्वपूर्ण बना देता है।
- महिला मतदाता: बिहार में
महिला मतदाता (वोटर टर्नआउट के मामले में पुरुषों से लगातार आगे) हमेशा से एक
निर्णायक कारक रही हैं। महिलाओं को लुभाने के लिए दोनों गठबंधन वादे कर रहे
हैं, लेकिन नीतीश कुमार के 'जीविका'
और शराबबंदी जैसे फैसलों के कारण महिलाओं के एक बड़े
वर्ग का झुकाव परंपरागत रूप से जदयू की ओर रहा है। दोनों दलों द्वारा महिला
उम्मीदवारों की संख्या कम (एनडीए में 35, महागठबंधन
में 29 महिला प्रत्याशी) होने के बावजूद, आधी आबादी
का रुख ही सत्ता की कुंजी तय करेगा।
- बाहुबलियों का दबदबा और सुशासन का मुद्दा: सुशासन के दावों के बावजूद, आरजेडी और भाजपा दोनों ने ही बाहुबलियों (अपराध के मामलों वाले नेताओं) या उनके परिवार के सदस्यों को टिकट दिए हैं। यह दिखाता है कि जीत सुनिश्चित करने के लिए 'बाहुबलियों' के स्थानीय प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सका है, जो सुशासन और विकास के मुद्दों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है।
कुल मिलाकर, एनडीए पुराने अनुभवों और संगठनात्मक मजबूती के साथ अपनी मूल जातियों को साध रहा है, जबकि महागठबंधन एक युवा और ऊर्जावान चेहरे, तेजस्वी यादव, के नेतृत्व में बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर 'एम-वाई प्लस' फॉर्मूले पर काम कर रहा है। सत्ता की चाबी अंततः उसी गठबंधन के हाथ लगेगी, जो सबसे बेहतर समन्वय साधकर, अपने कोर वोट बैंक को एकजुट रखने के साथ-साथ, उदासीन और अन्य वर्गों में सेंध लगा पाएगा।
- Abhijit
25/10/2025
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